2010/12/25

रिश्ता

यूँ छिप छिप के जीने से अच्छा ,
अपनी ज़िन्दगी को अंजाम देते है !
बहुत हो चुकी इशारों मैं बाते ,
अपनी चाहतों को अब जुबान देते हैं !
भागते भागते थक गए जमाने से ,
आ अपनी साँसों को थोडा आराम देते है !
हमे डर ज़माने का अब और नहीं रखना ,
हमें है मोहब्बत आ बता सरेआम देते है !
तेरे साथ हर कदम चलना चाहता हूँ मैं ,
आ हाथ इक दूजे का थाम लेते है !
आ हो जाये इक दुसरे हमेशा के लिए हम ,
रिश्ते को अपने प्यारा सा नाम देते है ! 


                       सागर मल शर्मा " शरीफ "


2010/12/23

याद ना आया किजिये

हर किसी को नजरों से गुजरा कीजिये ,
चेहरों के नकाब भी उतरा कीजिये !
ज़िन्दगी भर का दे जाये गम कोई ,
ना विश्वास किसी पे इतना सारा किजिये !

कहते है गुस्सा आदमी को मार देता है ,
गुब्बार दिल का कभी कभी निकला किजिये !
दर्द हो सीने मैं तो ज़िन्दगी नहीं कटती ,
हर दर्द का अपनों से बंटवारा किजिये !

डगर है लम्बी सफ़र अकेले ना आसां होगा ,
संग चलने को अपने दोस्त बनाया किजिये !
होंगे रस्ते काँटों के ,तो होंगे फूल भी मगर ,
डर के मुस्किलों से ,ना मंजिलों से किनारा किजिये !

ज़िन्दगी मैं बहुत कुछ कहना सुनना पड़ता है ,
हर बात को सीने से ना लगाया किजिये !
हम तन्हा है हमें और तन्हा ना करो ,
हमें इस कदर भी तो ना याद आया किजिये !

हमारे दिल की धड़कन तो ठहर गई लेकिन ,
आप तो बस इस कदर मुस्कुराया किजिये !
हम मर गए इसका हमें गम नहीं " सागर ",
आके कब्र पे मेरी आंसूं ना बहाया किजिये !

2010/12/22

ज़िन्दगी

हम जलते रहे शमां कि तरह हर पल,
इतने जले कि शब् भी सहर हो गई !
अब और नहीं जल सकता खत्म है आरजू ,
ये शब् भी तो खत्म होती नजर आती नहीं !

ये रस्ते ये मंजिले है पुराने हूँ वाकिफ में इनसे ,
इनसे गुजरा हूँ कई बार और फिर गुजर रहा हूँ !
मुझे मंजीलें मिली वो जो नहीं है काबिल मेरे ,
मेरी जरुरत है जो वो मंजिल नजर आती नहीं !

डर है ......
कहीं खो ना जाऊ इस ज़माने के गहरे रिश्तों में ,
बंधकर इनमे ना तड़पता रहू मैं बेजल मछली की तरह  !
दो चार कदम ही तो और चलना है जिंदगी बीताने को ,
मुझे ये जिंदगी गुजरती भी तो नजर आती नहीं !

मौत भी तो देखो ज़माने को वफ़ा करना सिखाती है,
नहीं कोई करार आने का मगर  जरुर आती है !
मौत कहती है तुने देखा ही कहाँ है ज़िन्दगी को ,
मैं तो हु साथ तेरे मगर ज़िन्दगी क्यों आती नहीं !

पता नही ....
अभी कुछ और पल मैं जिऊंगा या मरूँगा और थोडा ,
मर मर के तो मैंने खोजा है ज़िन्दगी को बहुत !
मुझको तो यकीं है वो मुझको मिल सकती है मोड़ पे ,
मगर सीधी है मेरी डगर मुड़ के ये जाती नहीं !

कभी कभी

वक़्त ने किये है जो सितम,आज भी है मेरे साथ ,
घाव बनकर दुखते है ,रिसते है वो कभी कभी !
वो पल जो तेरे साथ गुजरे ,याद आते है मुझे,
पीड़ दर्द-ऐ -दिल कि आँखों से बह जाती है कभी कभी !
कभी मौज बनकर कभी गर्म हवा का झोंका बनकर ,
कर्ज बनकर सताते है ;रहम ज़िन्दगी के कभी कभी !
क्या है तुझमें कि अब तलक नहीं भुला पाए तुझे ,
याद करके नाम तेरा गुनगुनाते है कभी कभी !
है कौन और मेरा अपना जो मुझ को हिचकियाँ आती है ,
है बात कुछ कि याद मुझको अब भी करते है वो कभी कभी !

2010/12/20

शराफत हुस्न वालों

  देखी है जब से शराफत हुस्न वालों कि-२
    डरते है तब से शरीफों से " सागर "

मोहब्बत उसकी

हुस्न ऐ मोहब्बत कि क्या चर्चा करूँ ,भरता ही नहीं दिल दीदार से -२
चाँद को भी सरम आती होगी ,सूरत जो नजर उसकी आती होगी !
भले चाहे किसी को कोई कितना भी ,दस्तूर ऐ लाज भी तो जरुरी है ,
चला गया वो रूठ कर हमसे ,मगर याद तो उसको भी आती होगी !
दंग रह गए हम उनके अंदाज-ऐ-पर्दा-ऐ मोहब्बत को देख कर ,
वो बताते नहीं तो क्या ,दिल्लगी तो उनको भी सताती होगी !
क्यों छुपाकर हाथों में चेहरा सरमाते है वो अकेले में ,
सोच कर मेरे बारे में शाम-ओ-सहर लाज आती होगी !
" सागर " ही नहीं उनको देख कर शायरी लिखता यारों ,
वो भी मोहब्बत में लफ्ज प्यार के बनाती होगी !
में यूँ ही उस पर इलज़ाम लगता रहा बेवफाई का ,
डर के रुसवाइयों से वो मिलने ना आती होगी !

पंजाबी कि रचना हिंदी अनुवाद के साथ

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ਬਾਗਾਂ ਚ ਖਿੜਦੇ ਸੁਰਖ ਗੁਲਾਬ ਵਾਂਗ ਰਹੀ -੨
ਕਿਸੇ ਸਾਹ੍ਜਾਦੀ ਦੇ ਸੋਹਣੇ ਨਵਾਬ ਵਾਂਗ ਰਹੀ !
ਅਸਾਂ ਤਾਂ ਰਾਤਾਂ ਗੁਜਰ ਲੇਨੀ ਹੈ ਮਸੈਯਾ ਦੀ ,
ਤੂ ਰਹੀ ਤੇ ਚੋਹਾਦਵੇਂ ਦੇ ਚਨ ਵਾਂਗ ਰਹੀ !
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बागां च खिड्दे सुर्ख गुलाब वांग रही -२
किसे सहजादी दे सोहने नवाब वांग रही !
असी तां  रातां गुजार लेनी है मस्या दी ,
तू रही ते चोह्दवीं दे चन वांग रही !
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आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा

आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा ,
गम में छुपी गम कि तकलीफ को देखा !
हम सोचते थे आंसू बहाने वाला रखता है दर्द ,
आँखों के सूखे समंदर में मरे कस्ती सवार को देखा  !
आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा ,
गम में छुपी गम कि तकलीफ को देखा !
बात कि नहीं जा रही थी रोते रोते ,
दर्द उसका महफ़िल में हर किसी ने देखा !
आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा ,
गम में छुपी गम कि तकलीफ को देखा !
छुपा के आंसू जिसने मुस्कुरा के दिखाया ,
उसके दिल को अकेले में आंसू बहाते देखा !
आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा ,
गम में छुपी गम कि तकलीफ को देखा !
ना आग थी ना पानी था वहां -२ ,
मिजाज़ उसका कभी गर्म कभी सर्द देखा !
आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा ,
गम में छुपी गम कि तकलीफ को देखा !
ना मुस्कुराहटो से छिपता है ना रोने से दिखता है ,
इस दर्द को हंसी से जीते आंसुओं से मरते देखा !
आज हमने गम को बड़ी नजदीक से देखा ,
गम में छुपी गम कि तकलीफ को देखा !

                        सागर मल शर्मा " शरीफ "

2010/12/17

मजहब नहीं सिखाता

तकसीम कर दिया हमने उसने तो एक बनाया था ,
धरती को काट कर हम हक़ अपना अपना जताने लगे !
कुछ तो उसकी कारीगरी है जो सिखाती है हमको साथ रहना ,
हवा कि कोई पहचान क्यों नहीं ,फूलो का कोई जहान क्यों नहीं !


आंसुओं से भरी आँखों को देखकर क्यों दिल नहीं पिघलता ,
कुछ लोग होते है बस काम जिनका दहशत फैलाना !
ना हिन्दुओ को छोड़ते है ,ना मुसल्मान पे रहम इनको ,
ये ना हिन्दू है ना मुस्लमान ,इनका कोई ईमान क्यों नहीं !


ना बनाते ये मजहब अलग अलग तो ये बैर ना होता ,
मुस्लिम से पूछता हु तू हिन्दू क्यों नहीं ,
हिन्दू से पूछता हु तू मुस्लिम क्यों नहीं !
मार काट कर एक दुसरे को हम जाना कहाँ चाहते है,
कोई पूछता क्यों नहीं इन्सान से कि तू इन्सान क्यों नहीं !

                                                  सागर मल शर्मा " शरीफ "

नियत

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     फूलो ने नजाकत में ढलना छोड़ दिया ,
     काँटों ने भी धुप में जलना छोड़ दिया ,
     इल्जाम जब से मसले फूलो का माली पे आया ;
    फूलो ने बागानों में खिलना छोड़ दिया !


     हर सख्स कि है सोच अपनी अपनी ,
     और सोच पर भारी दुनियादारी यहाँ ,
     नियत इस कदर गिरी है दुनिया वालो कि ,
     संग अपनों के लोगो ने चलना छोड़ दिया !

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  ज़िन्दगी हुयी है कुछ इस कदर मेहरबान " सागर "
  रौशनी अपने घर में दुसरो के चरागों से होती है !
  दोस्ती यूँ ही नहीं है ज़िन्दगी के मायने ,
  तुझसे कि दोस्ती तो ज़िन्दगी बदलने लगी है !
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नाम ग़ालिब का भी आसमान में चमकने लगा था,
महफ़िलो में जब कलाम-ऐ ग़ालिब जमने लगा था ,
रोशनी के नहीं थे बन्दोबस्त , ना इन्तेजाम थे तेल-ओ-बाती के ,
तालियों कि गडगडाहट में " सागर " उजाला दमकने लगा था !

2010/12/16

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      जख्मो का आलम ना पूछो , दर्द कितना है ना पूछो ,
      साँस छोड़े तो दर्द होता है ,साँस ले तो दर्द होता !

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      गमो के बादलो को हमने ,खुशियों का आंचल बनाया है ,
        ज़माने के तीरों को " सागर " हंस हंस के खाया है
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टूटे हुए दिल बेचता हूँ ,आंसुओ के दरिया बेचता हूँ ,
गम के मारे है गम के खजाने मेरे पास !
है आरजू तो मुस्कुरा के लेलो .........
बहलाने को दिल आपका ,अपने दिल के अरमान बेचता हूँ !

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होठों से लगा लो जल्दी से ;छलका ना देना ये पैमाना ,
मुझसे बिछड़ने का गम इतना ; कहीं खुद से जुदा ना हो जाना !
मुझे गीत सुनकर प्यार का ;हंसके विदा तुम करना ,
कही रोक ना ले मेरे कदमो को , आँखों में ना तुम आंसू लाना  !


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क्यों दिल के सोये अरमान जगा रहे हो ;
हम चाहते है भूलना क्यों सामने आ रहे हो,
तू नहीं हासिल तुझको सपना बना रखा है ;
देखते है तुझे खवाबों में ज़माने से छुपा रखा है !

2010/12/13

अब हम जवान हो चले है

चाहत थी हमे बच्चा ना कहे कोई ,
अब हम जवान हो चले है .................
जो काम बड़े कर सकते है वो हम भी कर सकते है
भार सोंप कर तो देखो , अब हम जवान जो हो चले है !
चाहत है हाथ बड़ो का बँटाये ,बच्चे नहीं;
हम भी बड़े हो रहे है ,अब हम जवान हो चले है  !
कहते है बड़े जिमेदारी नहीं उठा पाओगे ;
कहते तो हो , हम जवान हो चले है !
ना उठा पाओगे जिंदगी कि सच्चाई ;
बच्चे ही रहो ना कहो जवान हो चले है !
बच्चे रह कर जियो बचपन को ;
सोच कर कहना हम जवान हो चले है !
अहसास हो रहा है , बात सच थी उनकी ;
अब जब हम जवान हो चले है .........!
मुस्कुराना चाहे तो भी ना मुस्कुरा पाते है ;
पता चल रहा है धीरे-२ हम जवान हो चले है !
दो पल चैन के बड़ी कीमत मांगते है -२
कहते है अब तुम जवान हो चले हो !
दुखो के कर्ज में डूब गई ये जवानी ,
आखिर क्यों हम जवान हो चले है !
आंसुओ में धुलती ये जवाई पूछती है ,
क्यों !
क्यों कहते हो कि अब हम जवान हो चले है.......................

                                            सागर मल शर्मा "शरीफ "

महोब्बत

करले हसरत पूरी उनके दिदार कि -२
ज़िन्दगी-ऐ-रात अभी बाकी है जरा सी !
निशान ढूंढो तो मिल ही जायेंगे मेरे -२
अभी बाकि है खाक-ऐ-मकान में चिंगारी जरा सी !
अगर सुन लेता उनके प्यार क दो बोल मैं -२
और जी  लेता मैं ज़िन्दगी जरा सी !
उस को सितम-ऐ-कुदरत कहिये -२
वो हो जाते हमारे अगर नो होती देर जरा सी !
हम पुकारते है तो चले आते है अक्सर -२
तूफान बन गई है जो महोब्बत थी जरा सी !
आके कर जाते है वो मेरी कब्र और गीली-२
मेरी रूह ने नम करदी थी जो जरा सी !


                                 सागर

2010/12/11

दोस्ती...................

दिल से निकले जो आवाज वो दिल तलक जाती है -२
उनकी खुशी जब अपनी ख़ुशी बन जाती है....
उनके दर्द पर जब अपनी आँखों से निकले आंसू ;
दुनिया ऐसे रिश्तों को "सागर" दोस्ती बुलाती है !

इश्क क्या है

इश्क क्या है हमको तो कहीं मिलता ही नहीं-२ 
बहुत ढूँढा है रह गुजर में कहीं मिलता ही नहीं !
इश्क क्या है ..........................
मैंने इन फिजाओं में लगाई है आवाजें बहुत-२
इश्क लगता है बहरा वो सुनता ही नहीं !
इश्क क्या है ..........................
में ढूँढने को उसको अखबार में छपवा दू -२
सुना है मगर इश्क है अँधा उसे दिखता ही नहीं !
इश्क क्या है..................................
बाज़ार में पैसे दे कर खरीद लता में इश्क को -२
मगर बाजारों में इश्क बिकता ही नहीं !
बहुत ढूँढा है रह गुजर में कही दिखता ही नहीं !
कहीं मिलता ही नहीं............
इश्क क्या है हमको तो कही..................

2010/12/08

दर्द के दो आंसू

दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ,
मेरी तन्हाइयो का साथ निभाने अक्सर चले आते है ,
मेरे आस पास घूमते है,टहलते है, चहल कदमी करते है,
और फिर लोट जाते है मेरे दिल के अँधेरे कोने में ,
मेरी आत्मा बैठी है जो कोने में कचोटते है उसको ,
उजाला जो फैला है छोटी सी बाती का ...........फूँक मार कर भुजाना चाहते है,

दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ,


दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ,
मेरे शरीर पर यादो के निशाँ घाव बनकर रह गए है ,
उन निशानों पर गिरकर ये जलाते है उनको ,
कभी कभी सूख जाते है ,नहीं दिखते ,
कभी सुबकियों के साथ बहते है अनवरत ,
लगता है घावों पर नमक छिड़का किसी ने अभी अभी ,
दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ..................


दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ,
कभी हंसी आने लगती है कभी खिलखिलाते है ,
कभी जख्मी दिल कि दीवारों को खरोचते है ,
पसीने में धुल जाते है,कभी मिल के बहते है ,
गालों पे निशान उफनी नदी सा बनाते  है ,
आँखे सूज जाती है जैसे समुन्द्र में डेल्टा बनते है ,
दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ,



दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है ,
भूल जाता हूँ कभी कभी दर्द ढूख सारे कभी,
ज़िन्दगी आगे बढ़ने के लिए कहती है ,होंसला बढाती है ,
कभी लगता है ये आंसू मुझे सहारा देते है ,
मेरे दर्द का कारण बता कर,मेरी मंजिल कि याद दिलाते है ,
प्यासे होंठो को गीला कर के प्यास भूजाते है ,
दर्द के दो आंसू ,मेरे आस पास रहते है , दर्द के दो आंसू .......................

2010/12/07

सागर तुम तो बिगड़ गए

छुट गई हाथों से माला ,मोती सरे बिखर गए !
आँखों में सपने रखे थे, ना जाने वो किधर गए !
वक़्त हमारे साथ था ,पलपल लेकिन छीनता रहा !
लम्हे जो प्यार भरे थे मेरे ,जाने कब वो बीत गए !


खून शरीर का भी अब तो तेज रवानी में रहता है !
गुस्से में रहने लगे ,तेवर भी तो बदल गए !
लोग कहते है कि तुम जाने हो गए कैसे यार !
मतलब कि ही बात है करते " सागर " अब हम संभल गए !

साथ जो चलने कि कोशिश कि वक़्त ने नाता तोड़ दिया !
वक़्त तो आगे निकल गया , हम कितना पीछे छुट गए !
वक़्त मुताबिक ढलने कि कोशिश कि हमने,और बदले भी !
दुनिया बोली बिगड़ गए पर  हमे लगा हम सवर गए !

2010/12/02

रोशनी

मुद्दा ये है की रोशनी आएगी कैसे -२ ;
जो अँधेरे में  है रास्ता  उनको दिखाएगी कैसे -२,
हम यूँ ही ना मर जाये औरो की तरह " सागर "
लोगो को याद हमारी आएगी कैसे........... ! लोगो को याद ...........

तेरा इंतज़ार

खवाबों में उभरती गई आँखों से छलकती गई-२
तेरी याद में रोते दिल की आहें सी निकलती रही !
सुबकियाँ ही सुनाई देती थी ,इक बूँद टपक जाने के बाद-२
तडपते दिल की चीखें सन्नाटा चिर के निकलती रही !
मेरे दिल के सवालों का जवाब यही दिया उसने -२
में अर्ज किया करता वो हस के निकलती रही !
इंतज़ार की हद से भी बहूत आगे निकाल आया में -२
हर सुबह करता इन्तजार वो खवाबों में मिलती रही !
उसको डर था मुझसे के कही में दिल मांग ना लू -२
में तकाजा करता रहा वो यूँ ही डरती रही !
अपना भी दीवानापन था हम कहते थे जान ले लो-२
उसके दो आंसू ना गिरे मेरी जिस्म-ओ-जान पिघलती रही !
मेरी आरजू थी आखिरी इक बार वो अपना कहदे -२
पर वो जालिम ना मानी, मेरी सांसे निकलती रही !
पर आस नहीं टूटी सोचा कहेगी मरने के बाद -२
वो नहीं आई " सागर " मेरी चिता यूं ही जलती रही !
                                   मेरी चिता यूं ही जलती रही ..................