कागज़ पर गम को उतारने के अन्दाज ना होते-२
मैं मर गया होता ,अगर शायरी के अल्फाज ना होते है !
पंख थे मगर उड़ने की चाहते ना थी-२
होंसले मर गए होते अगर देखे मैने ये परवाने ना होते !
मुझे था पता की तू थी बेवफा लेकिन-२
तुजे चाहता नहीं अगर तुजमे वफ़ा के अन्दाज ना होते !
मुजको होता केसे मालूम दोस्ती होती है क्या -२
मुजको चोट करने वाले सुरत - ऐ -दोस्त अदू ना होते !
मैं था बड़ा बदनाम ,इतना मशहुर ना होता -२
वीरानो मैं शहर दिलजलों के अगर आबाद ना होते !
तुझे कोन कहता शायर ,तेरी शायरी कोन सुनता-२
अगर दिल मैं तेरे सागर ये आज़ाब ना होते !
home
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है...
आपकी टिप्पणियाँ मार्गदर्शक बनकर मुझे प्ररित करती है.....
आभार ..........