2010/12/02

रोशनी

मुद्दा ये है की रोशनी आएगी कैसे -२ ;
जो अँधेरे में  है रास्ता  उनको दिखाएगी कैसे -२,
हम यूँ ही ना मर जाये औरो की तरह " सागर "
लोगो को याद हमारी आएगी कैसे........... ! लोगो को याद ...........

तेरा इंतज़ार

खवाबों में उभरती गई आँखों से छलकती गई-२
तेरी याद में रोते दिल की आहें सी निकलती रही !
सुबकियाँ ही सुनाई देती थी ,इक बूँद टपक जाने के बाद-२
तडपते दिल की चीखें सन्नाटा चिर के निकलती रही !
मेरे दिल के सवालों का जवाब यही दिया उसने -२
में अर्ज किया करता वो हस के निकलती रही !
इंतज़ार की हद से भी बहूत आगे निकाल आया में -२
हर सुबह करता इन्तजार वो खवाबों में मिलती रही !
उसको डर था मुझसे के कही में दिल मांग ना लू -२
में तकाजा करता रहा वो यूँ ही डरती रही !
अपना भी दीवानापन था हम कहते थे जान ले लो-२
उसके दो आंसू ना गिरे मेरी जिस्म-ओ-जान पिघलती रही !
मेरी आरजू थी आखिरी इक बार वो अपना कहदे -२
पर वो जालिम ना मानी, मेरी सांसे निकलती रही !
पर आस नहीं टूटी सोचा कहेगी मरने के बाद -२
वो नहीं आई " सागर " मेरी चिता यूं ही जलती रही !
                                   मेरी चिता यूं ही जलती रही ..................