2011/04/10

है मोहब्बत कितनी तुझ से..............

देखे न और कोई तुझे मेरे सिवा मैं ये चाहती हूँ ,
तुझे छुपा के ज़माने से;सीने से लगाना चाहती हूँ ,
तू रहे सदा मेरा बन के ,और रहे मेरे दिल के करीब,
तुझ को देख कर जीना ,तेरे सामने ही मर जाना चाहती हूँ,
है मोहब्बत कितनी तुझ से ये बताना चाहती हूँ !

दिल के आरमान जाने तेरे साथ कहा जाने को कहते है ,
हाथ पकड़ के साथ तेरे आसमानों मैं उड़ जाना चाहती हूँ ,
तेरी बन के जीना ,तेरी ही मर जाना चाहती हूँ,
तू आजमाए न आजमाए; मैं खुद को आजमाना चाहती हूँ,
है मोहब्बत कितनी तुझ से ये बताना चाहती हूँ !

मैं तन्हा हूँ तेरे बिना ,मेला भी विराना सा लगता है ,
तूं नहीं होता तो हमको सारा जहाँ बेगाना सा लगता है ,
बीना तेरे जीना,सोच कर भी कांप जाती हूँ मैं ," सागर "
सारी जिन्दगी साथ तेरे ;तेरी हो के बिताना चाहती हूँ,
है मोहब्बत कितनी तुझ से ये बताना चाहती हूँ !

12 टिप्‍पणियां:

  1. teri abhi tak ki jitni poems hai unme se best and flawless hai yeh...

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  2. Shringaar ras ki har kavita me wahi baat h magar fir bhi kitni nayi si lagti h ye kavita.. pata nahi ye prem kaa jaadu h ya kaviyo ka... beautiful poem.. keep writing :)

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  3. aapki kavitaon ki mala ka ek or sunder moti....bahut sunder...

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  4. priye kavivar mahoday apki kavita harday ko chhune wali hai...
    apki har kavita sunder lagati hi kintu ye behad pasand ayi.
    aise hi kavita likhate rahe ...

    dhanyavad
    Ravi Sharma

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  5. प्यार में एकाधिकार को कहती अच्छी रचना

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  6. व्हाला भाई सागर जी
    घणैमान रामराम !
    राजी-खुशी होवोला …
    पिछाणग्या ?
    …के ? …कोनी जाण्या ?

    अरे आप रौ राजस्थानी भाई !
    रावतसर थांरौ शहर , म्हारौ बीकानेर !
    रजथानी स्सै एक हां , किस्या पराया-ग़ैर ?!

    … … … :)
    नेट भ्रमण करते हुए अचानक आपके यहां पहुंच कर हार्दिक प्रसन्नता है … आशा है , आवागमन होता रहेगा अब ।

    अच्छी रचनाओं के साथ अच्छा ब्लॉग है आपका

    देखे न और कोई तुझे मेरे सिवा मैं ये चाहती हूं
    प्यार में प्रिय एकाधिकार ही चाहता है हमेशा…
    बढ़िया !
    … और श्रेष्ठ लेखन के लिए मंगलकामनाएं हैं ।


    * हार्दिक शुभकामनाएं ! *


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. व्हाला भाई सागर जी
    घणैमान रामराम !
    राजी-खुशी होवोला …
    पिछाणग्या ?
    :))

    है मोहब्बत कितनी तुझ से ये बताना चाहती हूँ !
    प्रीत बिना जग सूना रे बंधू .....
    बधाईयाँ .....!!

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  8. प्रेम में सराबोर - सुंदर रचना

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  9. मैं तन्हा हूँ तेरे बिना ,मेला भी विराना सा लगता है ,
    तूं नहीं होता तो हमको सारा जहाँ बेगाना सा लगता है ,

    बढ़िया !
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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