2011/04/03

किस्सा नए जूतों का

घूमने निकले हम बाज़ार में इक दिन ,
चमक रहे थे नए नए जूते हमारे पाँव में !
चमकते जूतों को देख कर मित्र हमारा हैरान होकर बोला,
चप्पल की जगह जूते ? क्या है भईया  गड़बड़ झाला ?.....
अरे ओ दया के पात्र कविराय,क्या कविता कहीं कोई बेच आये हो ?
तभी तो टूटी चप्पल छोड़ कर ,नए जूते पहन आये हो !
मैंने कहा भईया आजकल सलाह देने वाले बहुत है ,
मेरी कविता भले क्यों ख़रीदे कोई,मरने को तो जरिये और बहुत है !!
किसी नैक दिल श्रौता की सलाह का परिणाम है ,
जिसकी वजह से नए जूतों पे मेरा नाम है !
उसने पूछा ऐसी कोन सी सलाह दे दी जो निहाल हो गए ?
जिससे गंगू तेली से राजा भोज जैसे हाल हो गए !
हमने कहा किसी ने सलाह दी हमको 
की हे कवि क्यों गलियों में मारे- मारे  फिरते हो ?
किसी कवि समेलन में क्यों नहीं मरते हो ?
उसने पूछा फिर ?
हमने बताया फिर क्या
किसी ने  कवि सम्मलेन है कही पर ऐसा बताया ,
हम पहुँच गए वहां पर और भाग्य आजमाया !
बारी जब हमारी आई तो हमने आपना हुनर दिखाया ,
जैसे ही हमने कविता पाठ सुरु किया ; हमने पाया !
इस महान कवि का कोई सम्मान नहीं करता था ,
एक जूता या एक चप्पल ही फेंका करता था  !
अंडे टमाटर भी कुछ तो फूट जाते ,और कुछ ही काम आते थे ,
रोटी के ही लगते थे ,सब्जी के तो पैसे बच जाते थे !
उस दिन किसी श्रौता ने पहली बार बुद्धिमता दिखाई ,
दोनों जूते फैंक कर किस्मत मेरी जगाई ,भईया लाखो दुआएं पाई !
ये थी सारी कहानी जो हमने " सागर "तुमको सुनाई है ,
इसी लिए कवि की ये सवारी नए जूतों के साथ आई है ! 

2 टिप्‍पणियां:

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