क्या मेरे खवाबों की तस्वीर देखोगे ऐ तमाशबीन ,
मेरे दरो दीवार ,और खूंटियों पर हसरते टंगी है !
कही डब्बो में बंद अभिलाषायें है,मेरी चाहतें है कहीं ,
मेरी अलमारी मैं मेरे टूटे सपनो की कड़ियाँ धरी है !
तुझको यकीं आये ना आये मगर मैं कहता हूँ ,
बिखरी मेरे कमरों मैं मेरे दिल की अस्थियाँ पड़ी है !
दिल ने मेरे मुझको समझाने को चिठ्ठियाँ लिखी ,
मेरे चूल्हे में लेकिन जलने को वो चिठ्ठियाँ पड़ी है !
मैने जो चाहा ना मुझको वो नसीब हुआ ,
देखो आँगन में मेरे अरमानों की वो गठरियाँ पड़ी है !
बहुत उकसाया मेरी इच्छाओं ने मुझको ,
मगर मेरे घर के पिछवाड़े में मुझको उनकी मज़ारे मिली है !
सामने भी अगर सपनो में आ जाये कोई मेरे,
तो मैं ना बताऊंगा उसको कोन सी मेरे दिल की गली है !
मैं ढक लेता हु तेरी यादों की चादर से खुद को " सागर ",
बीमार फिर से ना हो जाऊं कहीं ,इश्क की फिर जो ये हवा चली है
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2011/01/06
हादसा
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
हाथों से छुट कर मिट्टी मैं मिल गया ,
मोती जो वर्षों से हाथों मैं सहेजा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
आँखों से निकल कर बिखर गया मेरी राहों मैं ,
सपना जो मेरी आँखों ने प्यार से तराशा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
अब तो हर तरफ बस तन्हाई सी दिखती है ,
छंट गया दिल से छाया जो धुँआ था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम चुप के से गुजर गए मेरी कब्र के पास से ,
यू लगा मेरी रूह को जैसे ठंडा झोंका हवा का था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम रुके ना इक पल भी तो क्या हुआ ,
कहती है ये फिजाये गुजरा कोई अपना था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
मेरी रूह को कहता है खुदा अब भूल के सब आजा ,
तेरा कोन है वहां " सागर " वो तो इक हादसा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी ..........................
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
हाथों से छुट कर मिट्टी मैं मिल गया ,
मोती जो वर्षों से हाथों मैं सहेजा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
आँखों से निकल कर बिखर गया मेरी राहों मैं ,
सपना जो मेरी आँखों ने प्यार से तराशा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
अब तो हर तरफ बस तन्हाई सी दिखती है ,
छंट गया दिल से छाया जो धुँआ था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम चुप के से गुजर गए मेरी कब्र के पास से ,
यू लगा मेरी रूह को जैसे ठंडा झोंका हवा का था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम रुके ना इक पल भी तो क्या हुआ ,
कहती है ये फिजाये गुजरा कोई अपना था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
मेरी रूह को कहता है खुदा अब भूल के सब आजा ,
तेरा कोन है वहां " सागर " वो तो इक हादसा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी ..........................
नव वर्ष मंगलमय हो
जिस तरह आसमान के सभी रंग मिलकर इन्द्रधनुष बनाते है ,
जिस तरह बनाती है सहद मधुमखी रंग बिरंगे फूलों से ,
जिस तरह सात सुर मिलकर जीवन संगीत बनाते है ,
जिस तरह सागर में आके सारे संसार की नदियाँ मिलती है ,
उसी तरह सारे संसार की खुशियाँ आपके दामन मैं भर जाये !
नव वर्ष २०११ आपके सपनो को हकीकत का धरातल प्रदान करे !
नव वर्ष मंगलमय हो
जिस तरह बनाती है सहद मधुमखी रंग बिरंगे फूलों से ,
जिस तरह सात सुर मिलकर जीवन संगीत बनाते है ,
जिस तरह सागर में आके सारे संसार की नदियाँ मिलती है ,
उसी तरह सारे संसार की खुशियाँ आपके दामन मैं भर जाये !
नव वर्ष २०११ आपके सपनो को हकीकत का धरातल प्रदान करे !
नव वर्ष मंगलमय हो
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