2011/01/06

हादसा

मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
हाथों से छुट कर मिट्टी मैं मिल गया ,
मोती जो वर्षों से हाथों मैं सहेजा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
आँखों से निकल कर बिखर गया  मेरी राहों मैं ,
सपना जो मेरी आँखों ने प्यार से तराशा था !

मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
अब तो हर तरफ बस तन्हाई सी दिखती है ,
छंट गया दिल से छाया जो धुँआ था !

मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम चुप के से गुजर गए मेरी कब्र के पास से ,
यू लगा मेरी रूह को जैसे ठंडा झोंका हवा का था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम रुके ना इक पल भी तो क्या हुआ ,
कहती है ये फिजाये गुजरा कोई अपना था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
 मेरी रूह को कहता है खुदा अब भूल के सब आजा ,
तेरा कोन है वहां " सागर " वो तो इक हादसा था  !

मैंने भर के चुल्लू भर पानी ..........................

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