मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
हाथों से छुट कर मिट्टी मैं मिल गया ,
मोती जो वर्षों से हाथों मैं सहेजा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
आँखों से निकल कर बिखर गया मेरी राहों मैं ,
सपना जो मेरी आँखों ने प्यार से तराशा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
अब तो हर तरफ बस तन्हाई सी दिखती है ,
छंट गया दिल से छाया जो धुँआ था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम चुप के से गुजर गए मेरी कब्र के पास से ,
यू लगा मेरी रूह को जैसे ठंडा झोंका हवा का था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम रुके ना इक पल भी तो क्या हुआ ,
कहती है ये फिजाये गुजरा कोई अपना था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
मेरी रूह को कहता है खुदा अब भूल के सब आजा ,
तेरा कोन है वहां " सागर " वो तो इक हादसा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी ..........................
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
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