क्या मेरे खवाबों की तस्वीर देखोगे ऐ तमाशबीन ,
मेरे दरो दीवार ,और खूंटियों पर हसरते टंगी है !
कही डब्बो में बंद अभिलाषायें है,मेरी चाहतें है कहीं ,
मेरी अलमारी मैं मेरे टूटे सपनो की कड़ियाँ धरी है !
तुझको यकीं आये ना आये मगर मैं कहता हूँ ,
बिखरी मेरे कमरों मैं मेरे दिल की अस्थियाँ पड़ी है !
दिल ने मेरे मुझको समझाने को चिठ्ठियाँ लिखी ,
मेरे चूल्हे में लेकिन जलने को वो चिठ्ठियाँ पड़ी है !
मैने जो चाहा ना मुझको वो नसीब हुआ ,
देखो आँगन में मेरे अरमानों की वो गठरियाँ पड़ी है !
बहुत उकसाया मेरी इच्छाओं ने मुझको ,
मगर मेरे घर के पिछवाड़े में मुझको उनकी मज़ारे मिली है !
सामने भी अगर सपनो में आ जाये कोई मेरे,
तो मैं ना बताऊंगा उसको कोन सी मेरे दिल की गली है !
मैं ढक लेता हु तेरी यादों की चादर से खुद को " सागर ",
बीमार फिर से ना हो जाऊं कहीं ,इश्क की फिर जो ये हवा चली है
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
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