घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
बांध गयी जिंदगी मौत सी आखिर वो गिरह क्या है
बैठा हु अँधेरों में अकेला ताकता हूँ शून्य में बार बार ,
आँखे हुयी हैं नम क्यों ,आँसुओं की वजह क्या है ,
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
देखता हूँ अपने अक्स को ,पूछता हूँ सवाल ख़ुद से ,
मन में लगी है आग मेरे ,मन के जख्मों की दवा क्या है ;
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
संसार की इस बिसात पर ,मैं हु एक मोहरे की तरह ;
कोशिश करना काम हैं मेरा ,कोशिशें कर रहा हु मैं ;
जीत जाऊँ जब बिसात पर तो वाह वाह है मेरी ;
हार जाऊँ तो जब टूट जाये बिसात कहते है मेने किया क्या है ;
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
टूट गए वो आशियाने जिनके बचे रहने की आश थी -२
जिंदगी मजबूर चलने को ;पहले ही बड़ी हताश थी ;
मुसाफिरों से पूछते है ;आवर आगे जाना कहाँ है ;
जान ही बाकि है जिंदगी और मुझमें बचा क्या है ;
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
दो सांसो का जीवन ,एक सांस में तड़पे ;एक सांस में दुआ की ;
कभी मरने की दुआ मांगी ;कभी जीने की कसम खाई ;
सांस ले कर भी थक गए ;तुम कहते हो जिया क्या है ;
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
मैं चला जो लड़ने खौफ से ;वो कहते है मोहब्बत की बात न कर ;
क्यों जान गवाता है अपनी सागर ;इस दुनियां से तुमको मिला क्या है ;
हसरतें मिट जाएँगी तेरी ,जहाँ में और इस वफ़ा का सिला क्या है ;
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
अपनी साँस को भी हमने अपना नहीं माना ;
दुनियां वालो के लिए हमने अपनी जान गवाई है ;
मैं आदमी हूँ ;क्या मेने अपनी पहचान मिटाई है ;
बाद कुर्बानी मुझे भूल जाने की वजह क्या है ;
घूमते हुए इस काल चक्र में सोचता हूँ मेरी जगह क्या है ||
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