2010/12/22

ज़िन्दगी

हम जलते रहे शमां कि तरह हर पल,
इतने जले कि शब् भी सहर हो गई !
अब और नहीं जल सकता खत्म है आरजू ,
ये शब् भी तो खत्म होती नजर आती नहीं !

ये रस्ते ये मंजिले है पुराने हूँ वाकिफ में इनसे ,
इनसे गुजरा हूँ कई बार और फिर गुजर रहा हूँ !
मुझे मंजीलें मिली वो जो नहीं है काबिल मेरे ,
मेरी जरुरत है जो वो मंजिल नजर आती नहीं !

डर है ......
कहीं खो ना जाऊ इस ज़माने के गहरे रिश्तों में ,
बंधकर इनमे ना तड़पता रहू मैं बेजल मछली की तरह  !
दो चार कदम ही तो और चलना है जिंदगी बीताने को ,
मुझे ये जिंदगी गुजरती भी तो नजर आती नहीं !

मौत भी तो देखो ज़माने को वफ़ा करना सिखाती है,
नहीं कोई करार आने का मगर  जरुर आती है !
मौत कहती है तुने देखा ही कहाँ है ज़िन्दगी को ,
मैं तो हु साथ तेरे मगर ज़िन्दगी क्यों आती नहीं !

पता नही ....
अभी कुछ और पल मैं जिऊंगा या मरूँगा और थोडा ,
मर मर के तो मैंने खोजा है ज़िन्दगी को बहुत !
मुझको तो यकीं है वो मुझको मिल सकती है मोड़ पे ,
मगर सीधी है मेरी डगर मुड़ के ये जाती नहीं !

कभी कभी

वक़्त ने किये है जो सितम,आज भी है मेरे साथ ,
घाव बनकर दुखते है ,रिसते है वो कभी कभी !
वो पल जो तेरे साथ गुजरे ,याद आते है मुझे,
पीड़ दर्द-ऐ -दिल कि आँखों से बह जाती है कभी कभी !
कभी मौज बनकर कभी गर्म हवा का झोंका बनकर ,
कर्ज बनकर सताते है ;रहम ज़िन्दगी के कभी कभी !
क्या है तुझमें कि अब तलक नहीं भुला पाए तुझे ,
याद करके नाम तेरा गुनगुनाते है कभी कभी !
है कौन और मेरा अपना जो मुझ को हिचकियाँ आती है ,
है बात कुछ कि याद मुझको अब भी करते है वो कभी कभी !