2010/11/27

क़ाबलियत की तकदीर

मैं नहीं चाहता दीवारें गिरे , और मैं नए महलो की नीवं रखूँ ,
इन्ही दीवारों पर आशाओ की मजबूत छत डालनी चाहिए !
मजबूर क्यों हो सफलता  किसी के इशारो पे चलने को ,
उस सफलता को  भी एक तकदीर मिलनी चाहिए !
सफलता -असफलता का ये दौर हाथों में अपने रहेगा कैसे ,
उस सफलता की तकदीर मैं हमारी लकीर खींचनी चाहिए !
क्यों मैं अपनी काबलियत का सरे राह ढिंढोरा पिट्वाऊँ,
अपने हिसाब से शोहरत मुझे खुद-बी-खुद मिलनी चाहिए !
क्यों हाथ मैं लेकर डिग्रियां दफतरों के चक्कर मैं काटू ,
तो क्या घर बैठे ही नहीं मुझको नोकरी मिलनी चाहिए !
मेरी भी तो तम्मनाये आसमां मैं उड़ने की है कबसे ,
ज़िन्दगी निकल ना जाये अब तो पर निकलने चाहिए !
समुन्द्र में लगा कर गोते मैं गहराइयों से मोती निकल लाऊं ,
सांस लेने की गहराइयों में मुजको मोहलत मिलनी चाहिए !
है सपनो का छोटा सा आसमां ,मगर चाहते है बड़ी बड़ी ,
बस जमीं पर लाने को उनको इक होंसला चाहिए !
में बना सकता हु इक जहाँ उजालों का " सागर " ,
साथ चल सके मेरे ऐसे मुझको हमसफ़र तो मिलना चाहिए !
है  मुझमे भी क़ाबलियत हूँ  में भी तो हुनर वाला मगर ,
पैसों से ही तो सिर्फ हमारी नहीं सूरत मिलनी चाहिए !
पैसों से ही तो सिर्फ हमारी नहीं सूरत मिलनी चाहिए.................................................

अन्दाज- ऐ - शायरी

कागज़ पर गम  को उतारने के अन्दाज ना होते-२
मैं मर गया होता ,अगर शायरी के अल्फाज ना होते है !
पंख थे  मगर उड़ने की चाहते ना थी-२
होंसले मर गए होते अगर देखे मैने ये परवाने ना होते !
मुझे था पता की तू थी बेवफा लेकिन-२
तुजे चाहता नहीं अगर तुजमे वफ़ा के अन्दाज ना होते !
मुजको होता केसे मालूम दोस्ती होती है क्या -२
मुजको चोट करने वाले सुरत - ऐ -दोस्त अदू ना होते !
मैं था बड़ा बदनाम ,इतना मशहुर ना होता -२
वीरानो मैं शहर दिलजलों के अगर आबाद ना होते !
तुझे कोन कहता शायर ,तेरी शायरी कोन सुनता-२
अगर दिल मैं तेरे सागर ये आज़ाब ना होते !
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