चाहत थी हमे बच्चा ना कहे कोई ,
अब हम जवान हो चले है .................
जो काम बड़े कर सकते है वो हम भी कर सकते है
भार सोंप कर तो देखो , अब हम जवान जो हो चले है !
चाहत है हाथ बड़ो का बँटाये ,बच्चे नहीं;
हम भी बड़े हो रहे है ,अब हम जवान हो चले है !
कहते है बड़े जिमेदारी नहीं उठा पाओगे ;
कहते तो हो , हम जवान हो चले है !
ना उठा पाओगे जिंदगी कि सच्चाई ;
बच्चे ही रहो ना कहो जवान हो चले है !
बच्चे रह कर जियो बचपन को ;
सोच कर कहना हम जवान हो चले है !
अहसास हो रहा है , बात सच थी उनकी ;
अब जब हम जवान हो चले है .........!
मुस्कुराना चाहे तो भी ना मुस्कुरा पाते है ;
पता चल रहा है धीरे-२ हम जवान हो चले है !
दो पल चैन के बड़ी कीमत मांगते है -२
कहते है अब तुम जवान हो चले हो !
दुखो के कर्ज में डूब गई ये जवानी ,
आखिर क्यों हम जवान हो चले है !
आंसुओ में धुलती ये जवाई पूछती है ,
क्यों !
क्यों कहते हो कि अब हम जवान हो चले है.......................
सागर मल शर्मा "शरीफ "
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2010/12/13
महोब्बत
करले हसरत पूरी उनके दिदार कि -२
ज़िन्दगी-ऐ-रात अभी बाकी है जरा सी !
निशान ढूंढो तो मिल ही जायेंगे मेरे -२
अभी बाकि है खाक-ऐ-मकान में चिंगारी जरा सी !
अगर सुन लेता उनके प्यार क दो बोल मैं -२
और जी लेता मैं ज़िन्दगी जरा सी !
उस को सितम-ऐ-कुदरत कहिये -२
वो हो जाते हमारे अगर नो होती देर जरा सी !
हम पुकारते है तो चले आते है अक्सर -२
तूफान बन गई है जो महोब्बत थी जरा सी !
आके कर जाते है वो मेरी कब्र और गीली-२
मेरी रूह ने नम करदी थी जो जरा सी !सागर
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