चाहत थी हमे बच्चा ना कहे कोई ,
अब हम जवान हो चले है .................
जो काम बड़े कर सकते है वो हम भी कर सकते है
भार सोंप कर तो देखो , अब हम जवान जो हो चले है !
चाहत है हाथ बड़ो का बँटाये ,बच्चे नहीं;
हम भी बड़े हो रहे है ,अब हम जवान हो चले है !
कहते है बड़े जिमेदारी नहीं उठा पाओगे ;
कहते तो हो , हम जवान हो चले है !
ना उठा पाओगे जिंदगी कि सच्चाई ;
बच्चे ही रहो ना कहो जवान हो चले है !
बच्चे रह कर जियो बचपन को ;
सोच कर कहना हम जवान हो चले है !
अहसास हो रहा है , बात सच थी उनकी ;
अब जब हम जवान हो चले है .........!
मुस्कुराना चाहे तो भी ना मुस्कुरा पाते है ;
पता चल रहा है धीरे-२ हम जवान हो चले है !
दो पल चैन के बड़ी कीमत मांगते है -२
कहते है अब तुम जवान हो चले हो !
दुखो के कर्ज में डूब गई ये जवानी ,
आखिर क्यों हम जवान हो चले है !
आंसुओ में धुलती ये जवाई पूछती है ,
क्यों !
क्यों कहते हो कि अब हम जवान हो चले है.......................
सागर मल शर्मा "शरीफ "
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
wastav main hum muskurana chahte hai par nahi muskura pate.........
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