2010/12/13

महोब्बत

करले हसरत पूरी उनके दिदार कि -२
ज़िन्दगी-ऐ-रात अभी बाकी है जरा सी !
निशान ढूंढो तो मिल ही जायेंगे मेरे -२
अभी बाकि है खाक-ऐ-मकान में चिंगारी जरा सी !
अगर सुन लेता उनके प्यार क दो बोल मैं -२
और जी  लेता मैं ज़िन्दगी जरा सी !
उस को सितम-ऐ-कुदरत कहिये -२
वो हो जाते हमारे अगर नो होती देर जरा सी !
हम पुकारते है तो चले आते है अक्सर -२
तूफान बन गई है जो महोब्बत थी जरा सी !
आके कर जाते है वो मेरी कब्र और गीली-२
मेरी रूह ने नम करदी थी जो जरा सी !


                                 सागर

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