जब इक बहु आपनी सास से दूर अपने पति
के पास जाती है तो उस शास कि भावनाएं
जो अपनी बहु को बेटी कि तरह प्यार करती है ....
एक घर कि बेटी हो के पराई आई थी ,
आज फिर परायी सी होने जा रही है ,
दूर अपने सास ससुर से कहीं........
घर बसाने बेटी जैसे जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !
जब आई घर में तो लगा के रोनक आई,
आज बेटी लेके रोनक आपने साथ जा रही है ,
बड़ी मुश्किल से अपना बनाया था परायी बेटी को,
आज कर के वही पराया जा रही है...........
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !
खुशी है मगर आँखों में आँसूं भी तो है,
ग़म है तो उसके दूर जाने का,
आदत डाल दी उसने अपने प्यार कि,शरारत कि,
आठ्खेलियों कि ...............
मगर कर के मेरा आँगन सूना जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेरी जा रही है !
रोक भी नहीं सकती उसको,रोकू भी तो कैसे ,
पति कि है चिंता उसको ,पास पति के जा रही है ,
सेवा कि हमारी अब,पत्नी धर्म निभाने जा रही है,
लेके आशीर्वाद आपना घर बनाने जा रही है ,
धर्म निभाने जा रही है..............
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !
याद आएगी तेरी बेटी हर पल मुझे मैं जानती हूँ ,
कभी-कभी समझाना पड़ेगा खुद को मैं जानती हूँ ,
वो बेटी तुझ से दूर है मगर दिल के तो करीब है ,
जब भी बुलाएगी,आएगी कर के ये वादा जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !
चिंता है ध्यान खुद का केसे रखेगी वो,
बच्ची मेरी तू दिल वहां अकेले लगाएगी कैसे ,
नादाँ है तू खुद को वहां संभालेगी कैसे ,
भूल ना जाना वहां जा के अपनी इस माँ को...
मै सास हूँ मगर माँ कि तरह रुला कर जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है ........,