धुंआ नहीं उठता और आग जल जाती है -२ ,
इश्क ऐसी भट्टी है ,जो सब कुछ निगल जाती है !
तेरे,मेरे चाहने से ना जलती है ,ना भुजती है -२ ,
अपने आप सुलग जाती है ,यूँ ही जल जाती है !
इश्क ऐसी भट्टी है ,जो सब कुछ निगल जाती है !
तेरे,मेरे चाहने से ना जलती है ,ना भुजती है -२ ,
अपने आप सुलग जाती है ,यूँ ही जल जाती है !