वक़्त ने किये है जो सितम,आज भी है मेरे साथ , घाव बनकर दुखते है ,रिसते है वो कभी कभी ! वो पल जो तेरे साथ गुजरे ,याद आते है मुझे, पीड़ दर्द-ऐ -दिल कि आँखों से बह जाती है कभी कभी ! कभी मौज बनकर कभी गर्म हवा का झोंका बनकर , कर्ज बनकर सताते है ;रहम ज़िन्दगी के कभी कभी ! क्या है तुझमें कि अब तलक नहीं भुला पाए तुझे , याद करके नाम तेरा गुनगुनाते है कभी कभी ! है कौन और मेरा अपना जो मुझ को हिचकियाँ आती है , है बात कुछ कि याद मुझको अब भी करते है वो कभी कभी ! |
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2010/12/22
कभी कभी
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