2022/10/05

|| में हूँ मांझी ||

मुझको तेरी महोब्बत चाहिए दुनिया से लड़ने को ,

मेरी चाहत को देख  दुनिआ की दीवारों को न देख || 

मुझे भिड़ना नहीं है ज़माने की फौज से हमसफ़र; 

मंजिलों पे नजर,हाथों में हाथ ,चलना कितना है न देख || 

मेरी आँखों में सिकवे ,गीले,दर्द के अंगारों को न देख ,

दिल का सुकूं देख जख्मों  के  दरिया न देख || 

कश्ती है मोहब्बत की जो जाती है दिलों  तक ;

में हूँ मांझी समंदर में तेरा सागर ; तूफान,लहर,

गहराई,न देख सागर कुछ न देख || 


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