2022/10/05

|| सुकून ||

कोशिश मुझे ढूंढने की कहाँ कहाँ मिलता हूँ मैं ;

हर सख्श के दिलो दिमाग में रहता हूँ मैं || 


दुश्मन है उसे न नजदीक आने देना ;

गुस्से ,झगड़े,कलह से बड़ा डरता हूँ मैं | 


में चाहता तो हूँ की हर किसी के साथ रहूं ;

मगर मेरे साथ कोई पा नहीं पता || 


जो रहता है सारे दिन मौज मस्तियों में मसगूल ;

उनको भी कहाँ नसीब हो पता हूँ मैं || 


पैसों से तुम मुझे खरीद नहीं सकते ;

अमीर ,गरीब, हर किसी के पास मिलता हूँ मैं || 


रोशनी भले ही देता है सरे जहाँ को दिया ;|

खुद को जला के भी उसको कहाँ मिलता हूँ मैं  || 


दीखता है तुम को चमकदार तेजस बड़ा ;

जरूरी नहीं उसके पास भी रहता हूँ मैं || 


कर लेना कभी मुझको ;दिल को देके दिलासा ;

है बड़ा आसान मुझको पाना कहता हूँ मैं || 


जब यकीं हो की जो किया अच्छा किया खुद पे ;

सीने में हूँ तो आँखों से झलकता हूँ मैं   सागर || 


सुकून हूँ मैं ;कोई मुझे दिल का चैन कहता है ;

बाज़ारों में; हाटों में; कहाँ  बिकता हूँ मैं ||

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