2011/04/29

दोस्ती का सिला..........

उम्र के लिए शिकवा और गिला दे दिया ;
दोस्तों न दोस्ती का सिला दे दिया .......
मांगी थी ख़ुशी कुछ पल के लिए ;
उम्र भर के गमो का काफिला दे दिया .....
वो जो पीते थे जाम,मैयखानों  में साथ ;
भर के जहर का पैमाना  दे दिया .......
दुश्मनों से क्या  शिकायत करे   ;
दोस्तों न ही शिकायत का  मौका दे दिया .....
जिस को बताया राज परदे के पीछे का ;
उसने ही राज को बेपर्दा कर दिया .......
हर किसी पे नजर थी मेरी महफ़िल में ;
कंधे पे रख के हाथ छुरा घोंप दिया ............
मैं कहाँ  मरने वाला था सागर .;
जान थी जिस पंछी मैं मेरी वो ही मर गया  ...........



5 टिप्‍पणियां:

  1. मांगी थी ख़ुशी कुछ पल के लिए ;
    उम्र भर के गमो का काफिला दे दिया ...

    क्या बात है,वाह,क्या बात है.

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  2. बहुत सुन्दर खूबसूरत चित्रण| धन्यवाद|

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  3. क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

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  4. ...बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश छुपा है इन पाँक्तिओं मे। बधाई सुन्दर रचना के लिये।

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  5. प्रिय सागर भाई
    सस्नेह अभिवादन !

    मैं कहां मरने वाला था सागर
    जान थी जिस तोते मैं मेरी वो ही मर गया ………

    मरे आपके दुश्मन !
    … तोता भी चलेगा हा हाऽऽ हाऽऽऽ …

    रोचक रचनाएं होती हैं आपकी ।
    पढ़ कर कमेंट कम कर पाया हूं अब तक …
    आगे से संक्षेप में ही सही कोशिश करूंगा आने का सबूत छोड़ कर जाने की :)

    हार्दिक शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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