उम्र के लिए शिकवा और गिला दे दिया ;
उम्र भर के गमो का काफिला दे दिया .....
वो जो पीते थे जाम,मैयखानों में साथ ;
भर के जहर का पैमाना दे दिया .......
दुश्मनों से क्या शिकायत करे ;
दोस्तों न ही शिकायत का मौका दे दिया .....
जिस को बताया राज परदे के पीछे का ;
उसने ही राज को बेपर्दा कर दिया .......
हर किसी पे नजर थी मेरी महफ़िल में ;
कंधे पे रख के हाथ छुरा घोंप दिया ............
मैं कहाँ मरने वाला था सागर .;
जान थी जिस पंछी मैं मेरी वो ही मर गया ...........
दोस्तों न दोस्ती का सिला दे दिया .......
मांगी थी ख़ुशी कुछ पल के लिए ;उम्र भर के गमो का काफिला दे दिया .....
वो जो पीते थे जाम,मैयखानों में साथ ;
भर के जहर का पैमाना दे दिया .......
दुश्मनों से क्या शिकायत करे ;
दोस्तों न ही शिकायत का मौका दे दिया .....
जिस को बताया राज परदे के पीछे का ;
उसने ही राज को बेपर्दा कर दिया .......
हर किसी पे नजर थी मेरी महफ़िल में ;
कंधे पे रख के हाथ छुरा घोंप दिया ............
मैं कहाँ मरने वाला था सागर .;
जान थी जिस पंछी मैं मेरी वो ही मर गया ...........
मांगी थी ख़ुशी कुछ पल के लिए ;
जवाब देंहटाएंउम्र भर के गमो का काफिला दे दिया ...
क्या बात है,वाह,क्या बात है.
बहुत सुन्दर खूबसूरत चित्रण| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंक्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
जवाब देंहटाएं...बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश छुपा है इन पाँक्तिओं मे। बधाई सुन्दर रचना के लिये।
जवाब देंहटाएंप्रिय सागर भाई
जवाब देंहटाएंसस्नेह अभिवादन !
मैं कहां मरने वाला था सागर
जान थी जिस तोते मैं मेरी वो ही मर गया ………
मरे आपके दुश्मन !
… तोता भी चलेगा हा हाऽऽ हाऽऽऽ …
रोचक रचनाएं होती हैं आपकी ।
पढ़ कर कमेंट कम कर पाया हूं अब तक …
आगे से संक्षेप में ही सही कोशिश करूंगा आने का सबूत छोड़ कर जाने की :)
हार्दिक शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार