खवाबों में उभरती गई आँखों से छलकती गई-२
तेरी याद में रोते दिल की आहें सी निकलती रही !
सुबकियाँ ही सुनाई देती थी ,इक बूँद टपक जाने के बाद-२
तडपते दिल की चीखें सन्नाटा चिर के निकलती रही !
मेरे दिल के सवालों का जवाब यही दिया उसने -२
में अर्ज किया करता वो हस के निकलती रही !
इंतज़ार की हद से भी बहूत आगे निकाल आया में -२
हर सुबह करता इन्तजार वो खवाबों में मिलती रही !
उसको डर था मुझसे के कही में दिल मांग ना लू -२
में तकाजा करता रहा वो यूँ ही डरती रही !
अपना भी दीवानापन था हम कहते थे जान ले लो-२
उसके दो आंसू ना गिरे मेरी जिस्म-ओ-जान पिघलती रही !
मेरी आरजू थी आखिरी इक बार वो अपना कहदे -२
पर वो जालिम ना मानी, मेरी सांसे निकलती रही !
पर आस नहीं टूटी सोचा कहेगी मरने के बाद -२
वो नहीं आई " सागर " मेरी चिता यूं ही जलती रही !
मेरी चिता यूं ही जलती रही ..................
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
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