2010/11/28

वक़्त की कद्र

सोच क्या बदल लेगा तू अपने आप को ,
फिर जब वक़्त निकल जायेगा तो पछतायेगा !
तेरी आदतें फिर तुझ पे हावी हो जाएगी ,
तू नहीं फिर इनसे नहीं बच पायेगा  !
वक़्त की कद्र कर वक़्त तुझको सराहेगा .......
सामने वाले को देख कर ही कुछ सिख  ;
कुछ सिख ऐसा जो तेरे काम आएगा !
ना देख उसमे है बुराई कितनी ;
बस देख तेरे वो कम कितना आएगा !
वक़्त की कद्र कर वक़्त तुझको सराहेगा ......
कहने को ज़िन्दगी और मौत एक सिक्के के दो पहलु है ;
एक पासा ज़िन्दगी और दूसरा पासा मौत है !
अब जब उछल चूका है सिक्का हवा में ;
अब ना सोच कोन सा पहलू आएगा  !
वक़्त की कद्र कर वक़्त तुझको सराहेगा ......
वक़्त रहते अपनी बिगड़ी सवार सकता है  ;
वक़्त वो झोंका है जो सन्नाटे के साथ चलता है !
है तेरे सामने तो तेरी आवाज सुनता है " सागर ";
नहीं मुड़ेगा अगर पीछे से आवाज लगाएगा !
वक़्त की कद्र कर वक़्त तुझको सराहेगा ......

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