छुट गई हाथों से माला ,मोती सरे बिखर गए !
आँखों में सपने रखे थे, ना जाने वो किधर गए !
वक़्त हमारे साथ था ,पलपल लेकिन छीनता रहा !
लम्हे जो प्यार भरे थे मेरे ,जाने कब वो बीत गए !
खून शरीर का भी अब तो तेज रवानी में रहता है !
गुस्से में रहने लगे ,तेवर भी तो बदल गए !
लोग कहते है कि तुम जाने हो गए कैसे यार !
मतलब कि ही बात है करते " सागर " अब हम संभल गए !
साथ जो चलने कि कोशिश कि वक़्त ने नाता तोड़ दिया !
वक़्त तो आगे निकल गया , हम कितना पीछे छुट गए !
वक़्त मुताबिक ढलने कि कोशिश कि हमने,और बदले भी !
दुनिया बोली बिगड़ गए पर हमे लगा हम सवर गए !
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
Khud ko laga sanwar gaye to bhad me jaye log..
जवाब देंहटाएंlovely lines... :)
keep writting :)