2010/12/17

नाम ग़ालिब का भी आसमान में चमकने लगा था,
महफ़िलो में जब कलाम-ऐ ग़ालिब जमने लगा था ,
रोशनी के नहीं थे बन्दोबस्त , ना इन्तेजाम थे तेल-ओ-बाती के ,
तालियों कि गडगडाहट में " सागर " उजाला दमकने लगा था !

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