तकसीम कर दिया हमने उसने तो एक बनाया था ,
धरती को काट कर हम हक़ अपना अपना जताने लगे !
कुछ तो उसकी कारीगरी है जो सिखाती है हमको साथ रहना ,
हवा कि कोई पहचान क्यों नहीं ,फूलो का कोई जहान क्यों नहीं !
आंसुओं से भरी आँखों को देखकर क्यों दिल नहीं पिघलता ,
कुछ लोग होते है बस काम जिनका दहशत फैलाना !
ना हिन्दुओ को छोड़ते है ,ना मुसल्मान पे रहम इनको ,
ये ना हिन्दू है ना मुस्लमान ,इनका कोई ईमान क्यों नहीं !
ना बनाते ये मजहब अलग अलग तो ये बैर ना होता ,
मुस्लिम से पूछता हु तू हिन्दू क्यों नहीं ,
हिन्दू से पूछता हु तू मुस्लिम क्यों नहीं !
मार काट कर एक दुसरे को हम जाना कहाँ चाहते है,
मार काट कर एक दुसरे को हम जाना कहाँ चाहते है,
कोई पूछता क्यों नहीं इन्सान से कि तू इन्सान क्यों नहीं !
सागर मल शर्मा " शरीफ "
wah bhai jaan sahi kah rahe ho
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