2010/12/17

मजहब नहीं सिखाता

तकसीम कर दिया हमने उसने तो एक बनाया था ,
धरती को काट कर हम हक़ अपना अपना जताने लगे !
कुछ तो उसकी कारीगरी है जो सिखाती है हमको साथ रहना ,
हवा कि कोई पहचान क्यों नहीं ,फूलो का कोई जहान क्यों नहीं !


आंसुओं से भरी आँखों को देखकर क्यों दिल नहीं पिघलता ,
कुछ लोग होते है बस काम जिनका दहशत फैलाना !
ना हिन्दुओ को छोड़ते है ,ना मुसल्मान पे रहम इनको ,
ये ना हिन्दू है ना मुस्लमान ,इनका कोई ईमान क्यों नहीं !


ना बनाते ये मजहब अलग अलग तो ये बैर ना होता ,
मुस्लिम से पूछता हु तू हिन्दू क्यों नहीं ,
हिन्दू से पूछता हु तू मुस्लिम क्यों नहीं !
मार काट कर एक दुसरे को हम जाना कहाँ चाहते है,
कोई पूछता क्यों नहीं इन्सान से कि तू इन्सान क्यों नहीं !

                                                  सागर मल शर्मा " शरीफ "

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