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फूलो ने नजाकत में ढलना छोड़ दिया ,
काँटों ने भी धुप में जलना छोड़ दिया ,
इल्जाम जब से मसले फूलो का माली पे आया ;
फूलो ने बागानों में खिलना छोड़ दिया !
हर सख्स कि है सोच अपनी अपनी ,
और सोच पर भारी दुनियादारी यहाँ ,
नियत इस कदर गिरी है दुनिया वालो कि ,
संग अपनों के लोगो ने चलना छोड़ दिया !
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मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
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