मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2019/12/10
मोहब्बत।।
2019/11/01
एक और जिन्दगी
नवंबर मुबारक।।
2019/10/27
।। हैप्पी दीवाली ।।
2019/10/21
किताब ए इश्क़।।
2019/10/10
मोहब्बत की मलकियत
मुझको आवाज में उसकी कोई गर बुला लेता।।
में अपने उसूलों कि किताबे भी जला देता।
मुझे उन अजनबी लोगों से कोई तकलीफ़ ही ना थी।
वो दोस्तों की तरह ना सही दुश्मनी ही निभा लेता।।
कब मेने उसको अपनी मलकीयत जताई थी।
भले वो गैर की बाहों में था तो मेरा क्या चला जाता ।
हमने तो बस मुहब्बत की उसे अपना जान कर।।
जो उसको था पसंद में भी उसको अपना बना लेता।।
अरे जब उसकी खुशी में उसकी एक रजा नहीं तोड़ी?
क्या हिम्मत थी हमारी उसकी बात से आगे चला जाता।
जुदा होने में और बिछड़ने में बस फर्क है इतना,
वो कह देते प्यार से सागर और में महफ़िल से चला जाता ।।
2019/10/08
रावण
में रावण हूं मुझे एक सोच कहते है।
मुझे जला देना बेशक मगर क्या मार पाओगे ।।
अपने भीतर झांक कर देख लेना सागर ।
खुदकुशी इस देश में गैर क़ानूनी है।।
2019/09/07
शराब
जलन उसको भी हुई, दर्द उसको भी उठा।
बुरा उसको कहा सबने, में झूमता रहा।।
शराब रूठ गई मुझ से, चढ़ती नहीं मुझे ।।
जबसे तेरी आंखो को मेने नशीला कह दिया।।
2019/08/26
ढूंढ ही लूंगा अ इश्क़ तुझको एक दिन।।
तड़पना, मरना, दर्द सहना यही बस हिसे में मेरे नहीं।।
जब अर्जुन पांव पड़े कान्हा के।।
रथ का नहीं पहिया तात ये जीवन चक्र है थामा।।
हाथ से जो निकला तो प्रलय आ गई समझो।।
अर्जुन को दिखता है सारा ये चक्र नहीं चलना चाहिए।।
पितामह की चिंता नहीं पर धरती पे जीवन बचना चाहिए।।
2019/08/24
तक़दीर।।
जिन्दगी बस मेरी ये तकदीर सी बना दे ,
में ख्वाब सा देखूं और तू हकीकत बना दे ,
सागर ना सही सागर सी फितरत हो जाए मेरी ।।
जिसे छोड़ दे दुनिया सारी , आ मेरी रूह में मिला दे ।।
और भला तुझसे ज्यादा क्या मांगू -२
देख कर तड़पे जिसे जग सारा, सागर को वो चांद बना दे ।।
2019/08/23
कान्हा कलयुग में मत आना।।
द्वापर के रोहिणी को, अष्ठमी को अवतरित हुए।।
इस कलयुग में लेकिन कान्हा जन्म कभी मत ले लेना।।
यहां दूध, दही, छाछ नहीं, मयखनो में जाम मिलेंगे।।
सुदामा कहीं नहीं मिलता , आस्तीनो के सांप मिलेंगे।।
अरे चीर हरण में तुमने कान्हा साड़ी कहां खत्म होने दी?
द्रोपती की आस्था की लीर कहां भस्म होने दी।।
नारी की इज्जत का यहां कलयुग में है खेल बना।
कन्याओं के चीथड़े करने वाले यहां वहसी नाग मिलेंगे।।
तू तो बड़ा वकील था कान्हा, प्यार से सारी जंग फतेह की।।
चंद पैसों के लालच में आकर, बिकते कितने ही वकील मिलेंगे ।।
अपने भक्तों की रक्षा को हे कान्हा गिरिधर तुम बने।। अर्जुन के विश्वाश को साधा , कान्हा तुम बने सारथी।।
रक्षा कलयुग में कहीं नहीं है, सागर हाहाकार मचा है।
धन बल कुछ ज्यादा हावी है, लोग यहां भगवान मिलेंगे।।
प्रभु दर्शन को द्वापर में बस श्रद्धा रखनी होती थी।।
कलयुग में तो तेरे दर्शन भी, लोगो के व्यापार मिलेंगे।।
महाभारत में रक्त रंजित धारा देख व्याकुल से हुए थे।।
कलयुग में कान्हा ऐसे रक्त रंजन सरे आम मिलेंगे ।।
लेकिन फिर भी आना हो तो,
लेकिन आना हो तो कान्हा ऐसे आना कलयुग में।।
चक्र हाथ से तेरे निकले और चहुं ओर संहार करे।।
इस कलयुग की महाभारत का अंत तुम्हीं को करना है।।
भारत के टुकड़े करने वालो के टुकड़े करना है ।।
संस्कृती के टुकड़े करने वालो के टुकड़े करना है।।
कान्हा
चोरी खुद की, और सब दोस्तो को डराया।।
बड़ा वकील था , प्यार से सब कैसे सुल्टाया ।।
एक उंगली पे तूने गोवर्धन को उठाया।।
कंस जैसे मामा को , मुक्ति का बोध कराया।।
द्वापर में रोहिणी नक्षत्र में अस्टमी को आया।।
कान्हा तू मेरे रोम रोम में रक्त समान समाया।।
2019/08/20
।। गुनगुनाती किताबे।।
तकनीक ने ऐसा कमाल कर दिया।।
किताब बोलने लगी है उसकी जुबान से ।।
वो खामोश सी इंतजार अब नहीं करती।।
खींच लेती है अपनी तरफ मेहबूबा की सदा हो जैसे।।
2019/01/09
इश्क़
कदम जब रखा था कहाँ सोच के रखा था।।
नुकसान ही होना था नफा सोच के रखा था ।।
तेरी सादगी ने मुझको कातिल बना दिया सागर ।।
वफ़ा करते कैसे भला , जब दगा सोच के रखा था।।।