रथ का नहीं पहिया तात ये जीवन चक्र है थामा।।
हाथ से जो निकला तो प्रलय आ गई समझो।।
अर्जुन को दिखता है सारा ये चक्र नहीं चलना चाहिए।।
पितामह की चिंता नहीं पर धरती पे जीवन बचना चाहिए।।
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2019/08/26
जब अर्जुन पांव पड़े कान्हा के।।
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