चोरी खुद की, और सब दोस्तो को डराया।।
बड़ा वकील था , प्यार से सब कैसे सुल्टाया ।।
एक उंगली पे तूने गोवर्धन को उठाया।।
कंस जैसे मामा को , मुक्ति का बोध कराया।।
द्वापर में रोहिणी नक्षत्र में अस्टमी को आया।।
कान्हा तू मेरे रोम रोम में रक्त समान समाया।।
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2019/08/23
कान्हा
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