द्वापर के रोहिणी को, अष्ठमी को अवतरित हुए।।
इस कलयुग में लेकिन कान्हा जन्म कभी मत ले लेना।।
यहां दूध, दही, छाछ नहीं, मयखनो में जाम मिलेंगे।।
सुदामा कहीं नहीं मिलता , आस्तीनो के सांप मिलेंगे।।
अरे चीर हरण में तुमने कान्हा साड़ी कहां खत्म होने दी?
द्रोपती की आस्था की लीर कहां भस्म होने दी।।
नारी की इज्जत का यहां कलयुग में है खेल बना।
कन्याओं के चीथड़े करने वाले यहां वहसी नाग मिलेंगे।।
तू तो बड़ा वकील था कान्हा, प्यार से सारी जंग फतेह की।।
चंद पैसों के लालच में आकर, बिकते कितने ही वकील मिलेंगे ।।
अपने भक्तों की रक्षा को हे कान्हा गिरिधर तुम बने।। अर्जुन के विश्वाश को साधा , कान्हा तुम बने सारथी।।
रक्षा कलयुग में कहीं नहीं है, सागर हाहाकार मचा है।
धन बल कुछ ज्यादा हावी है, लोग यहां भगवान मिलेंगे।।
प्रभु दर्शन को द्वापर में बस श्रद्धा रखनी होती थी।।
कलयुग में तो तेरे दर्शन भी, लोगो के व्यापार मिलेंगे।।
महाभारत में रक्त रंजित धारा देख व्याकुल से हुए थे।।
कलयुग में कान्हा ऐसे रक्त रंजन सरे आम मिलेंगे ।।
लेकिन फिर भी आना हो तो,
लेकिन आना हो तो कान्हा ऐसे आना कलयुग में।।
चक्र हाथ से तेरे निकले और चहुं ओर संहार करे।।
इस कलयुग की महाभारत का अंत तुम्हीं को करना है।।
भारत के टुकड़े करने वालो के टुकड़े करना है ।।
संस्कृती के टुकड़े करने वालो के टुकड़े करना है।।
मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
2019/08/23
कान्हा कलयुग में मत आना।।
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