2019/10/10

मोहब्बत की मलकियत

मुझको आवाज में उसकी कोई गर बुला लेता।।
में अपने उसूलों कि किताबे भी जला देता।
मुझे उन अजनबी लोगों से कोई तकलीफ़ ही ना थी।
वो दोस्तों की तरह ना सही दुश्मनी ही निभा लेता।।
कब मेने उसको अपनी मलकीयत जताई थी।
भले वो गैर की बाहों में था तो मेरा क्या चला जाता ।
हमने तो बस मुहब्बत की उसे अपना जान कर।।
जो उसको था पसंद में भी उसको अपना बना लेता।।
अरे जब उसकी खुशी में उसकी एक रजा नहीं तोड़ी?
क्या हिम्मत थी हमारी उसकी बात से आगे चला जाता।
जुदा होने में और बिछड़ने में बस फर्क है इतना,
वो कह देते प्यार से सागर और में महफ़िल से चला जाता ।।

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