2019/08/26

ढूंढ ही लूंगा अ इश्क़ तुझको एक दिन।।
तड़पना, मरना, दर्द सहना यही बस हिसे में मेरे नहीं।।


उफ्फ।।।तेरे मुस्कुराने पे आ जाये तो क्यों जान ना चली जाए।।
मरीज दिल के है अस्पताल ढूंढ लेने देना।।

जब अर्जुन पांव पड़े कान्हा के।।

रथ का नहीं पहिया तात ये जीवन चक्र है थामा।।
हाथ से जो निकला तो प्रलय आ गई समझो।।
अर्जुन को दिखता है सारा ये चक्र नहीं चलना चाहिए।।
पितामह की चिंता नहीं पर धरती पे जीवन बचना चाहिए।।

2019/08/25

2019/08/24

तक़दीर।।

जिन्दगी बस मेरी ये तकदीर सी बना दे ,
में ख्वाब सा देखूं और तू हकीकत बना दे ,
सागर ना सही सागर सी फितरत हो जाए मेरी ।।
जिसे छोड़ दे दुनिया सारी , आ मेरी रूह में मिला दे ।।
और भला तुझसे ज्यादा क्या मांगू -२
देख कर तड़पे जिसे जग सारा, सागर को वो चांद बना दे ।।

2019/08/23

कान्हा कलयुग में मत आना।।

द्वापर के रोहिणी को, अष्ठमी को अवतरित हुए।।
इस कलयुग में लेकिन कान्हा जन्म कभी मत ले लेना।।
यहां दूध, दही, छाछ नहीं, मयखनो में जाम मिलेंगे।।
सुदामा कहीं नहीं मिलता , आस्तीनो के सांप मिलेंगे।।
अरे चीर हरण में तुमने कान्हा साड़ी कहां खत्म होने दी?
द्रोपती की आस्था की लीर कहां भस्म होने दी।।
नारी की इज्जत का यहां कलयुग में है खेल बना।
कन्याओं के चीथड़े करने वाले यहां वहसी नाग मिलेंगे।।
तू तो बड़ा वकील था कान्हा, प्यार से सारी जंग फतेह की।।
चंद पैसों के लालच में आकर, बिकते कितने ही वकील मिलेंगे ।।
अपने भक्तों की रक्षा को हे कान्हा गिरिधर तुम बने।। अर्जुन के विश्वाश को साधा , कान्हा तुम बने सारथी।।
रक्षा कलयुग में कहीं नहीं है, सागर हाहाकार मचा है।
धन बल कुछ ज्यादा हावी है, लोग यहां भगवान मिलेंगे।।
प्रभु दर्शन को द्वापर में बस श्रद्धा रखनी होती थी।।
कलयुग में तो तेरे दर्शन भी, लोगो के व्यापार मिलेंगे।।
महाभारत में रक्त रंजित धारा देख व्याकुल से हुए थे।।
कलयुग में कान्हा ऐसे रक्त रंजन सरे आम मिलेंगे ।।
लेकिन फिर भी आना हो तो,
लेकिन आना हो तो कान्हा ऐसे  आना कलयुग में।।
चक्र हाथ से तेरे निकले और चहुं ओर संहार करे।।
इस कलयुग की महाभारत का अंत तुम्हीं को करना है।।
भारत के टुकड़े करने वालो के टुकड़े करना है ।।
संस्कृती के टुकड़े करने वालो के टुकड़े करना है।।

कान्हा

चोरी खुद की, और सब दोस्तो को डराया।।
बड़ा वकील था , प्यार से सब कैसे सुल्टाया ।।
एक उंगली पे तूने गोवर्धन को उठाया।।
कंस जैसे मामा को , मुक्ति का बोध कराया।।
द्वापर में रोहिणी नक्षत्र में अस्टमी को आया।।
कान्हा तू मेरे रोम रोम में रक्त समान समाया।।

2019/08/20

।। गुनगुनाती किताबे।।

तकनीक ने ऐसा कमाल कर दिया।।
किताब बोलने लगी है उसकी जुबान से ।।
वो खामोश सी इंतजार अब नहीं करती।।
खींच लेती है अपनी तरफ मेहबूबा की सदा हो जैसे।।