2011/01/30

बेटी जा रही है ........

जब इक बहु आपनी सास से दूर अपने पति
के पास जाती है तो उस शास कि भावनाएं 
जो अपनी बहु को बेटी कि तरह प्यार करती है ....

एक घर कि बेटी हो के पराई आई थी ,
आज फिर परायी सी होने जा रही है ,
दूर अपने सास ससुर से कहीं........
घर बसाने बेटी जैसे जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !

जब आई घर में तो लगा के रोनक आई,
आज बेटी लेके रोनक आपने साथ जा रही है ,
बड़ी मुश्किल से अपना बनाया था परायी बेटी को,
आज कर के वही पराया जा रही है...........
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !

खुशी है मगर आँखों में आँसूं भी तो है,
ग़म है तो उसके दूर जाने का,
आदत डाल दी उसने अपने प्यार कि,शरारत कि,
आठ्खेलियों कि ...............
मगर कर के मेरा आँगन सूना जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेरी जा रही है !

रोक भी नहीं सकती उसको,रोकू भी तो कैसे ,
पति कि है चिंता उसको ,पास पति के जा रही है ,
सेवा कि हमारी अब,पत्नी धर्म निभाने जा रही है,
लेके आशीर्वाद आपना घर बनाने जा रही है ,
धर्म निभाने जा रही है..............
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !

याद आएगी तेरी बेटी हर पल मुझे मैं जानती हूँ ,
कभी-कभी समझाना पड़ेगा खुद को मैं जानती हूँ ,
वो बेटी तुझ से दूर है मगर दिल के तो करीब है ,
जब भी बुलाएगी,आएगी कर के ये वादा जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है !

चिंता है ध्यान खुद का केसे रखेगी वो,
बच्ची मेरी तू दिल वहां अकेले लगाएगी कैसे ,
नादाँ है तू खुद को वहां संभालेगी कैसे ,
भूल ना जाना वहां जा के अपनी इस माँ को...
मै सास हूँ मगर माँ कि तरह रुला कर जा रही है ,
घर बसाने मेरी बेटी जा रही है ........,

2011/01/12

सोचता हु में.................

में रास्तों से गुजरता अक्सर ये सोचता हूँ  ,
टीस मन में मेरे किस चीज कि है ,
दिल में दर्द है इस ज़माने कि मेहरबानी ,
खुशियों के दो पल ज़माने में ढूँढता हूँ !
कभी सोचता हूँ दीप बिन तेल के ,
झिलमिला के जल तो उठे ;
लेकिन भुज जायेंगे झक से !
फूँक मरकर इनको भुजाना  ना पड़ेगा ,
आँखों से बहते झरनों से ख़ुशी को छंट लो ,
या के इनको इक्कठा कर लो पाती में !
कभी आग भुजाने के काम आयेंगे ,
या के प्यास तो भुजेगी किसी कि !
इन रास्तों पे गुजरता अक्सर सोचा करता हूँ !
वो दीपक जो मेरा रह्बरा बना है ,
क्यों उसके रास्तों पे क़दमों में अँधेरा है ,
मुझे तो वो नदिया के ऊपर का पूल दिखायेगा ,
टूटी सड़क का गड्डा वो कैसे दिखा पायेगा !
रास्तों के मोड़ पे रुक कर थोडा आराम करके ;
फिर मेरा मन इस ज़माने पे आंसू बहता है ,
मेरी आँखों से निरंतर बहती अश्रुधारा नहीं रूकती ,
क्यों इस अश्रुजल पर आकाल आता नहीं !
अक्सर सोचता हुआ फिर चल पड़ता हूँ ,
कई मंजिले आती है कई तलाशता हूँ ,
कभी खुशियाँ दे देती है पगडंडीयां ,
कभी दर्द नदियों के टूटे पूल दे देते हैं,
नदियाँ कई तैर के पार कि है मैने  ,
कई सडको के गड्डे छाने है मैंने ,
मुझे ना कही सुकून मिलता है ना खुशी,
मगर फिर भी चलता रहता हु मंजिल दर मंजिल ,
फिर भी इक जयोत है दिल में निरंतर जलती !
अक्सर इन रास्तों से गुजरता सोचता हु में !

2011/01/11

हो मौसम सुहाना और.................

हो मौसम सुहाना और मुलाकात हो जाये  ,
हम तुम मिले कही और कुछ बात हो जाये !

तेरी आशिकी है कि जहर है -२
आँखों से सिने मैं उतरी जाती है !
मैं मर तो जाऊं मगर मरता नहीं -२
कुछ और जी लूँ शायद तू आ जाये !

हो मौसम सुहाना और मुलाकात हो जाये  ,
हम तुम मिले कही और कुछ बात हो जाये !

बाँहों में बाहें डाले हम चले साथ साथ -२
मुश्किलों से डर कैसा जब हम है साथ साथ !
तुम्हे धुप लगे तो में छावं बन जाऊं ,
लगे प्यास तुझको तो लहू मेरा बरसात हो जाये !

हो मौसम सुहाना और मुलाकात हो जाये  ,
हम तुम मिले कही और कुछ बात हो जाये !

ये नदियाँ , ये पहाड़ , ये झरने कुछ नहीं -२
तुम नहीं पास तो ये दुनियां कुछ नहीं !
इक बार हाथों में हाथ लेके अपना कह दे ,
फिर मिट जाये दुनिया , चाहे सर्वनाश हो जाये !


हो मौसम सुहाना और मुलाकात हो जाये  ,
हम तुम मिले कही और कुछ बात हो जाये !

तेरे शबनमी होठों से मेरा नाम निकले -२
तेरे केशुओं कि छावं में मेरे दिन रात निकले !
तेरे आँचल में हो मेरे दिन कि शुरुआत ,
तेरे आँचल में ही मेरी रात हो जाये !


हो मौसम सुहाना और मुलाकात हो जाये  ,
हम तुम मिले कही और कुछ बात हो जाये !

तेरे हाथों में हो सुहाग के कँगन - २
हो तेरी मांग में सिन्दूर मेरे नाम का !
बेठी रहो मेरे सामने में तुम्हे देखा करूँ -२ ,
बस आज ही सुहाग कि वो रात हो जाये !



हो मौसम सुहाना और मुलाकात हो जाये  ,
हम तुम मिले कही और कुछ बात हो जाये !

2011/01/09

तड़प उसकी मोहब्बत की

फूलों से दोस्ती करके देखी ,अब काँटों को आजमाना है ,
मोहब्बत हमको मिले ना मिले ,दर्द से रिश्ता पुराना है !
अपने दिल की आखिरी ख्वाहिश पूछ ले ,
मेरे सफ़र को इक रात और है फिर चले जाना है !
दौर चाहे कैसा भी आये मुझको रोना नहीं  है ,
बहा दे आज सारा जितना आंसुओं का खजाना है !
लोग कहते है तू ज्यादा मुस्कुराने लगा है ,
क्या बताऊँ ये तो जख्म छुपाने का बहाना है !
अब नहीं मुझे मरहम-ऐ-दर्द-ऐ-दिल की जरुरत,
अब तो काम मेरा वक़्त-बेवक्त जख्म दुखाना है !
उसका दिया जख्म मेरी ताकत सी बन गया है ,
ज़िन्दगी हर पल अब नया जोश नया तराना है !
आज तू तड़पता है उसकी मोहब्बत  में " सागर ",
कल उसको अपनी गलती पे पछताना है !

2011/01/06

इश्क की हवा चली है

क्या मेरे खवाबों की तस्वीर देखोगे ऐ तमाशबीन ,
मेरे दरो दीवार ,और खूंटियों पर हसरते टंगी है !
कही डब्बो में बंद अभिलाषायें है,मेरी चाहतें है कहीं ,
मेरी अलमारी मैं मेरे टूटे सपनो की कड़ियाँ धरी है !
तुझको यकीं आये ना आये मगर मैं कहता हूँ ,
बिखरी मेरे कमरों मैं मेरे दिल की अस्थियाँ पड़ी है !
दिल ने मेरे मुझको समझाने को चिठ्ठियाँ लिखी ,
मेरे चूल्हे में लेकिन जलने को वो चिठ्ठियाँ पड़ी है !
मैने जो चाहा ना मुझको वो नसीब हुआ ,
देखो आँगन में मेरे अरमानों की वो गठरियाँ पड़ी है !
बहुत उकसाया मेरी इच्छाओं ने मुझको ,
मगर मेरे घर के पिछवाड़े में मुझको उनकी मज़ारे मिली है !
सामने भी अगर सपनो में आ जाये कोई मेरे,
तो मैं ना बताऊंगा उसको कोन सी मेरे दिल की गली है !
मैं ढक लेता हु तेरी यादों की चादर से खुद को " सागर ",
बीमार फिर से ना हो जाऊं कहीं ,इश्क की फिर जो ये हवा चली है

हादसा

मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
हाथों से छुट कर मिट्टी मैं मिल गया ,
मोती जो वर्षों से हाथों मैं सहेजा था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
आँखों से निकल कर बिखर गया  मेरी राहों मैं ,
सपना जो मेरी आँखों ने प्यार से तराशा था !

मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
अब तो हर तरफ बस तन्हाई सी दिखती है ,
छंट गया दिल से छाया जो धुँआ था !

मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम चुप के से गुजर गए मेरी कब्र के पास से ,
यू लगा मेरी रूह को जैसे ठंडा झोंका हवा का था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
तुम रुके ना इक पल भी तो क्या हुआ ,
कहती है ये फिजाये गुजरा कोई अपना था !
मैंने भर के चुल्लू भर पानी समंदर से पी लिया,
क्या करू मैं बड़े दिनों से प्यासा था !
 मेरी रूह को कहता है खुदा अब भूल के सब आजा ,
तेरा कोन है वहां " सागर " वो तो इक हादसा था  !

मैंने भर के चुल्लू भर पानी ..........................

नव वर्ष मंगलमय हो

जिस तरह आसमान के सभी रंग मिलकर इन्द्रधनुष बनाते है ,
जिस तरह बनाती है सहद मधुमखी रंग बिरंगे फूलों से ,
जिस तरह सात सुर मिलकर जीवन संगीत बनाते है ,
जिस तरह सागर में आके सारे संसार की नदियाँ मिलती है ,
उसी तरह सारे संसार की खुशियाँ आपके दामन मैं भर जाये !
नव वर्ष २०११ आपके सपनो को हकीकत का धरातल प्रदान करे !

नव वर्ष मंगलमय हो