में रास्तों से गुजरता अक्सर ये सोचता हूँ ,
टीस मन में मेरे किस चीज कि है ,
दिल में दर्द है इस ज़माने कि मेहरबानी ,
खुशियों के दो पल ज़माने में ढूँढता हूँ !
कभी सोचता हूँ दीप बिन तेल के ,
झिलमिला के जल तो उठे ;
लेकिन भुज जायेंगे झक से !
फूँक मरकर इनको भुजाना ना पड़ेगा ,
आँखों से बहते झरनों से ख़ुशी को छंट लो ,
या के इनको इक्कठा कर लो पाती में !
कभी आग भुजाने के काम आयेंगे ,
या के प्यास तो भुजेगी किसी कि !
इन रास्तों पे गुजरता अक्सर सोचा करता हूँ !
वो दीपक जो मेरा रह्बरा बना है ,
क्यों उसके रास्तों पे क़दमों में अँधेरा है ,
मुझे तो वो नदिया के ऊपर का पूल दिखायेगा ,
टूटी सड़क का गड्डा वो कैसे दिखा पायेगा !
रास्तों के मोड़ पे रुक कर थोडा आराम करके ;
फिर मेरा मन इस ज़माने पे आंसू बहता है ,
मेरी आँखों से निरंतर बहती अश्रुधारा नहीं रूकती ,
क्यों इस अश्रुजल पर आकाल आता नहीं !
अक्सर सोचता हुआ फिर चल पड़ता हूँ ,
कई मंजिले आती है कई तलाशता हूँ ,
कभी खुशियाँ दे देती है पगडंडीयां ,
कभी दर्द नदियों के टूटे पूल दे देते हैं,
नदियाँ कई तैर के पार कि है मैने ,
कई सडको के गड्डे छाने है मैंने ,
मुझे ना कही सुकून मिलता है ना खुशी,
मगर फिर भी चलता रहता हु मंजिल दर मंजिल ,
फिर भी इक जयोत है दिल में निरंतर जलती !
अक्सर इन रास्तों से गुजरता सोचता हु में !
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