कहीं कोई प्यासा तड़प के ना मर जाये -२
छलक जाने दे दो बूँदे आँखों से सागर
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मेरे विचारों की,दिल के अरमानो की,सपनो की जो अठखेलियाँ करते आ जाते है,कभी मेरी आँखों में,और टपक पड़ते है कभी आंसू बनकर,कभी खिल जाते है फूल बनकर मेरे दिल के आँगन में,कभी होठों पे मुस्कराहट बन के आ जाते है,कभी बन जाती है आवाज मेरी जब हो जाता हूँ में बेआवाज ,तब होती है इन शब्दों के समूहों से अभिव्यक्ति;अपनी भावनाओ को,अपने दिल के अरमानो को लिख कर;प्रस्तुत किया इक किताब कि तरह,हर उन लम्हों को जो है मेरी अभिव्यक्ति,अगर ये आपके दिल को जरा सा भी छू पाए तो मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा...
तुझे इश्क़ है मुझसे ; तो बोल ना !!
या की है नफरते मुझसे ; तो बोल ना !!
मैं बेताब हु सारे तेरे राज़ जानने के लिए ;
बैठ मेरे पास आ सारी गाँठे खोल न !!
चलो माना रूठे हो मुझसे नाराज हो तुम -२
क्या चाहते हो रजा क्या तेरी बोल ना !!
में कोई खुदा नहीं जो समझ जाऊ तेरे सोचने भर से ;
कोई जादू तुझे आता है तो ; बोल ना ;
तेरा मन मुझ से भर जाये तो बता देना ;
में बार बार थोड़े कहूंगा ; की बोल ना !!
चलो ; में चला जाता हूँ ; तुम बुला लेना ;
चला जाऊ क्या ?? बोल ना !!
तेरी मर्जी है तुझे मेने नौकरी पे थोड़े ही रखा है ;
तू जाना चाहता है सागर ; जा , बस बोल ना !!
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