2018/08/11

मैं बर्फ सा हूँ।।

मैं बर्फ सा हूँ।।
कुछ लोग मेरे पिघलने का इंतजार कर रहे है,
मैं पिघलु तो कुछ शरद मौसम कम हो,
जलावन सुख जाए, तो चूल्हे जले,
पौधे निकले जमीन से,फल लगे पेड़ो पे,
कुछ जानवर जो छुप गए है निकल कर बाहर आए,
उनको अपनी भूख कि फ़िक्र है, मौसम कुछ कम सर्द हो,
बच्चे स्कूल जाये, लोग रोजगार पे जाये, वो रास्ते जो बंद है अरसे से, मैं पिघलु तो खुल जाए,
वो जो लोग बैठे हैं घरो में बाहर आए,
चहल पहल हो ,रौनकें छाये,
मेरे पिघलने से बना पानी नदियों में बहे,
कुछ लब सूखे हुए तर हो जाए,
कुछ तालाब सूखे हुए भर जाए,मछलियां जो बस अब तड़पना सुरु कर चुकी है, बच जाए पानी से तरबतर जाए,
मगर मुझे याद है जब में पिघला था गए साल,
लोगो ने बद दुआएं दी थी बहुत, कई लोग जान से गये थे, कई घरों से बेघर हुए थे,
कइयों के व्यापार डूबे ,घर बार डूबे,
फसल डूबी, खलिहान डूबे, हाहाकार था हर जगह,
किनारों पे रहने वालों का खयाल आता है,
तो सोचता हूँ न पिघलु "सागर",
में बर्फ सा हुँ, ना पिघलु तो कैसे ना पिघलु,

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