2011/02/20

मन्दिर-ऐ-दिल

वो काफ़िर नहीं जो नाम खुदा का नहीं लेता;
काफ़िर तो वो है जो इन्कार मोहब्बत से करता है !
नसीब तुझे जन्नत होगी या नहीं क्या पता ;
जन्नत बनी है उसके लिए जो प्यार करता है !
खोट दिल मैं है तो लाख कोशिशे कर ले ,
तू मुखातिब न हो सकेगा जो प्यार दिल से करता है !
साथ महबूब का मिले तो भले ये दुनिया छूटे ,
सिर्फ सोचता है उसको,फ़िक्र महबूब की करता है !
न मंदिरों मैं भगवान्,मस्जिदों मैं कहाँ खुदा मिलता है ;
वो तो प्यार करने वालों के मन्दिर-ऐ-दिल मैं रहा करता है !
अजीब है " सागर " भी ऐ ज़माने वालों दीवाना ;
खाया है धोखा फिर भी मोहब्बत किया करता है !
 





1 टिप्पणी:

  1. "काफ़िर तो वो है जो इन्कार मोहब्बत से करता है!"

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